२५ अक्तूबर, १९७२

 

शिष्य माताजीको एक फूल देता है

और माताजी उसे लौटा देती हैं ।

 

     यह ''अवचेतनामें सत्यकी शक्ति'' है ।

 

         (कुछ क्षणके लिये मौन)

 

अवचेतनामें सब प्रकारके विरोध इकट्ठे है ।

 

    जी !

 

और वह इस तरह उठते है (जोरोंसे ऊपर उठनेकी मुद्रा), सारे समय, सारे समय । और तब... तुम्हें ऐसा लगता है कि तुम एकदमसे मूQ, निश्चेतन, दुर्भावनावाले हो । और यह सब.. (फिर वही नीचेसे ऊपर उठनेकी मुद्रा) ।

 

  और चेतना वहां है (सिरके चारों ओर इशारा), शांत, असाधारण रूपसे शांत... (माताजी हाथ फैलाती हैं) - ''हे प्रभु, तेरी इच्छा पूरी हों ।'' और तब, वह, वह नीचेसे ऊपर उठनेवाली चीजपर दबाव डालता है ।

 

  ऐसा लगता है मानों मेरी चेतनामें संसार-भरका युद्ध लड़ा जा रहा है । बात इस हदतक आ गयी है कि भूल जानेका, भगवानको क्षण-भरके किये भूल जानेका अर्थ है विभीषिका ।

 

   और तुम्हारा क्या हाल है?

 

     ओह, ऐसा लगता है कि अवचेतनाकी सफाईका कहीं अंत ही नहीं ।

 

हां, यह केवल एक ब्यक्तिकी बात नहीं है : यह धरतीकी अवचेतना है । हमका कहीं अंत नहीं । और फिर भी व्यक्तिको...

 

  तो, उसे रोकनेका मतलब होगा काम बंद कर देना । उसे जारी रखनेका मतलब है उसमें समय लगेगा... । पता नहीं. - । इसका कहीं अंत नहीं ।

 

 


  सप्टा है, हां, स्पष्ट है इसे बंद करनेका अर्थ होगा काम बंद कर देना । ऐसा है मानों वहां, चेतनामें (माताजी अपने सिरके चारों ओर इशारा करती हैं) संयोजन और क्रियाका केंद्र है ।

 

  इस तरह, मेरे पास बस एक ही उपाय है, शांत रहना, शांत, शांत (माताजी ऊपरकी ओर हाथ फैलाती हैं)... यह अनुभव करना कि व्यक्तित्व कुछ नहीं है, कुछ नहीं है, कुछ नहीं है -- वह गुजरने देता है, वह दिव्य किरणोंको गुजरने देता है । यही एक मात्र समाधान है । स्वयं भगवान्को.. युद्ध करना चाहिये ।

 

 ( मौन)

 

   पिछली बार, आपने कहा था कि मनुष्योंका सचेतन रूपसे भगवान्की ओर मुड़नेमें सैकड़ों, शायद हज़ारों साल लग जायेंगे । लेकिन...

 

 शायद नहीं ।

 

    ... ऐसा लगता है कि इस बार कोई निर्णायक चीज आकर रहेगी ।

 

हां... । जानते हो, मुझे लगता है कि व्यक्ति ध्यानको एकाग्र करनेके लिये प्रतिमाकी तरह है । लोगोंको किसी चीजकी जरूरत है - उन्हें हमेशा अपने आयामकी किसी चीजकी जरूरत रही है, ताकि वें उसपर अपना ध्यान केंद्रित कर सकें । तो यह शरीर अपनी ओरसे यथासंभव पूरी कोशिश करता है कि वह 'भागवत शक्ति' के मार्गमें रुकावट न बने । वह शक्ति उसमेंसे गुज़रती है, उसकी रुकावटोंको रद्द करती है और साथ ही... ऐसा बनाती है कि मानों वह एक प्रतिमा हों जिसकी लोगोंको अपना ध्यान केंद्रित करनेके लिये जरूरत है ।

 

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